धन्वंतरी आयुर्वेदिक क्लिनिक

ध्यान

ध्यान क्या है यह बताने से पहले मै आपको एक कहांनी की चंद वाक्य बताना चाहती हूँ। एक साधू एक बार अपने ध्यान से बाहर आए। तभी पेड पर बैठे कौए ने उनके कंधे पर विष्ठा कर दी। जिससे वो तपस्वी का क्रोध सर चढ गया उन्होंने केवल क्रोध भरी आंखो से उस कौए के पास देखा तो कौआ जल कर मर भस्म हो गया। उसी क्रोध को बिना शांत किए वो भिक्षा मांगने निकल पडते है। एक दरवाजे पर आकर वो कहते है माई भीक्षां देही...लेकिन अंदर से कोई आवाज नहीं देता ना कोई भीक्षा देने के लिए आता भी नहीं है। साधू दो-से तीन बार आवाज लगाता है लेकिन कोई नहीं आता जिससे साधू का क्रोध बढ जाता है। साधू क्रोध में वहाँ से जानेही वाले थे तभी उन्हें दरवाजा खोलने की आवाज सुनाई दी। वो पलटते है उस वक्त वो साधू सोच रहा था कि मेरे देखने मात्र से कौआ जल गया पता नहीं जो भीक्षा देने आ रही है उनका क्या होगा। इस सोच में वो था तभी उसके कानों पर आवाज पडी कि, ‘‘ मै कौआ नहीं हूँ जो तुम्हारे देखने से जलकर मर जाऊँगी।‘‘ जैसे ही साधु ने यह बात सुनी वह हक्काबक्का रह गया। पलभर उसे सुझा ही नहीं। एक साधारण स्त्री, जिसने कभी कोई तप नहीं किया कभी उनके पास ऐसी शक्ति कैसे आई कि वो मेरे मन में क्या चल रहां है यह भी जान लिया। वहाँ वो साधु का अहंकार चक्काचूर हो गया था। उसने उन्हें प्रणाम किया और कहाँ कि ‘माई’ मुझे ज्ञान दो। ऐसी शक्ति केवल ‘ध्यान’ से निर्माण हो सकती है।

ध्यान क्या है यह समझने से पहले हमें हमारे शरीर एवम् मन को समझना होगा। आइए जानते है हमारा शरीर क्या है।

हमारे शरीर को स्थूल कहा गया है। इसमें 5 ज्ञानेंद्रियाँ (आँख, नाक, कान, त्वचा तथा जीभ-जो चखती है) और 5 कर्मेंन्द्रियाँ (हाथ, पाँव, मूत्रेन्द्रिय, गुदा तथा जिव्हा – जो बोलती है) होते है। यहाँ समझना है जीभ है एक ही लेकिन उसके भिन्न भिन्न कर्मो के आधार पर उसे ज्ञानेंद्रियाँ या कर्मेंद्रियाँ कहा जाता है।

अब हम इंन्द्रिय को समझते है इन्द्रिय क्या है। जब आँख के बारे में कहते है तो वो इंद्रिय नहीं शरीर का अंग होता है। और जब हम आँख से उसके देखने कि शक्ति के बारे में कहते है तो उसे इंन्द्रिय कहा जाता है।इसी तरह बाकी सभी इन्द्रियों का है।

इन सभी 10 इन्द्रियों का स्वामी मन होता है। मन में ही विचारों का आदान-प्रदान होता रहता है। इन विचारों का निर्णय या स्वीकृति बुद्धि देती है। जो भी क्रियाएँ हम जीवन में करते हैं, उनके प्रभाव जहाँ अंकित होते हैं, उसे चित्त कहा गया हैं।

अब समझते है ध्यान क्या है?
मन, बुद्धि और चित्त तीनों पर नियंत्रण मिलाने का साधन ‘ध्यान’ है। मन की शक्ति अतुल्य होती है। जब हम मन को वश में कर लेते है तब जीवन के हर लक्ष्य को आसानी से प्राप्त कर सकते है। मन पर नियंत्रण मिलाने पर बुद्धि कि कार्यक्षमता बढ जाती है। और चित्त स्थिर हो जाता है। जिसके जीवन में शरीर चंचल और चित्त स्थिर हो वह जीवन के हर चुनौती में सफल होता है।

ध्यान के आधार

स्थिरता, श्रद्धा और विश्वास, समर्पण, मन की तटस्थता, निरन्तरता, एकांगी साधना (एक समय, एक स्थान, एक आसन, एक इष्ट, एक मंत्र, एक विधि) ये ध्यान के आधार है।

ध्यान कब करना चाहिए

ध्यान करने का सबसे अच्छा समय प्राणायाम के बाद कहा जाता है। यदि आप योगासन और प्राणायाम करते हो तो उसके बाद ध्यान किया जाए तो बहुत सरलता से आप ध्यान करते हो। किंतु कई बार कई कारण वश लोग योगासन प्राणायाम नहीं कर पाते। फिर भी वह लोग प्रार्थना या गायत्री मंत्र का जाप कर उसके बाद ध्यान कर सकते है। ध्यान के पहले की जानी वाली प्रार्थना

जब भी आपको समय मिले ज्योति जलाकर कुछ पल केवल ज्योति को देखते रहे। उसके बाद गायत्री मंत्र ऊँ भूर्भुवः स्वः। तत्सवितुर्वरेण्यं। भर्गोदेवसय धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात् ।। इसके बाद धयान शुरु करे

ध्यान कैसे करे:
देखा जाए तो ध्यान एक गहरा सागर है जिस में जितनी गहराईसे आप डुबते जाओगे उतनाही उन्नति करोगे। वैसे तो ध्यान करने के कई तरीके है। लेकिन हमारे जैसे आम इंसान को ध्यान करने का तरीका भी सरल होना चाहिए। इसिलिए हम यहां ‘सहज’ ध्यान को बता रहे हैं।

सहज ध्यान: स्थिती: अगर आप पद्मासन में बैठ सकते हो तो पद्मासन लगाए। अथवा सुखासन में बैठकर भी ध्यान किया जा सकता है। लेकिन अगर आप दिव्यांग हो या ज्येष्ठ नागरिक हो जिसके कारण आप सुखासन में भी नहीं बैठ सकते तो आपको जिस स्थिती में बैठना सहज हो उस स्थिती में बैठे। दोनो हाथों कि ज्ञान मुद्रा बनाकर हाथ अपने घुटनों पर रखे। आँखे कोमलता से बंद करे। चेहरे पर प्रसन्नता का भाव रख होटों पर मुस्कान रखे।

श्वास भरे : गहरा लंबा श्वास भरे। मतलब दोनो नासिकाओं से श्वास को भरना शुरू करे। सबसे पहले पेट में भरे। फिर धीरे-धीरे श्वास गले तक संपूर्ण भरे। कुछ क्षण श्वास को पकडे रखे यानी श्वास ना छोडे फिर धीरे-धीरे श्वास छोडे पहले गले से बाहर छोडे। फिर छाती और अंत में पेट से श्वास को बाहर छोडे। इस क्रिया को तीन बार दोहराए।

ऊँ ध्वनि : संपूर्ण श्रद्धा से ऊँ ध्वनि का उच्चारण करे। ऊँ को पहले धीरे-धीरे उच्चारण करते हुए लयबद्ध तरीके से ‘म’ पर अंत करे। कम से कम 5 बार ऊँ ध्वनि का उच्चारण करे।

मानसिक जाप : उसके बाद मन की मन में धीरे-धीरे ऊँ का जाप करे।

श्वास को देखे: फिर श्वास कि गती को देखे कि किस तरह आ रहा है और किस तरह जा रहा है।

विचारों को देखे: आने-जाने वाले विचारो को देखे। केवल विचारो को देखना है। विचार अच्छा है या बुरा है यह ना तय करे। केवल विचारो को देखना है। किसी भी विचार कोई प्रतिक्रिया ना दें।

आत्मचिंतन : अपने अंतर्मन के प्रकाश को देखे और आनंद को महसूस करे।

प्रार्थना : ध्यान की शुरुवात प्रार्थना से होती है और अंत भी शांति प्रार्थना से ही करना है। सबके मंगल की, कल्याण की कामनाएं करनी है।

ऊँ शांति: शांति: शांति: