धन्वंतरी आयुर्वेदिक क्लिनिक

स्वेदन कर्म : आयुर्वेद चिकित्सा की दिव्य प्रणाली के अनोखे फायदे

स्वेदन कर्म क्या है ?

स्वेदन यानी पसीना शरीर में स्थित मेद धातु का मल है। इसकी उत्पति उष्णता से होती है जो श्रम, व्यायामया अधिक गर्मी के प्रभाव से शरीर में पैदा होती है और शरीर से पसीना निकलने लगता है। इस तरह पसीना निकलना एक स्वाभाविक क्रिया है पर किसी रोग की चिकित्सा करते हुए पसीना निकालने के उपाय करना ‘स्वेदन’ कर्म या क्रिया कहा जाता है।

स्वेदन कर्म के फायदे व लाभ

इस क्रिया से पसीना निकालने से शरीर के रोम छिद्र खुल जाते हैं और पूर्व कर्म ‘स्नेहन’ द्वारा शरीर के जो दोष ढीले किये गये थे वे पसीने के साथ शरीर से बाहर आने की स्थिति में आ कर कोष्ठ में आ जाते हैं। इसके बाद पंच कर्म चिकित्सा के अन्तर्गत इसके प्रमुख कर्म वमन, विरेचन करके इन दोषों को शरीर से बाहर कर दिया जाता है ।

मेद और कफ से वात के आवृत्त होने पर शरीर में भारीपन और जकड़न आदि लक्षण प्रकट होते हैं। इस स्थिति को दूर करने के लिए ‘स्वदेन’ किया जाता है। इससे वात का शमन होता है और जठराग्नि प्रदीप्त होती है । जकड़न, भारीपन व आलस्य दूर होता है। पंचकर्म के अलावा अन्य रोगों की चिकित्सा में भी स्वदेन क्रिया का उपयोग किया जाता है।

स्वेदन कर्म में उपयोग किये जाने वाले स्वेदनीय द्रव्य :

स्वेदन क्रिया में उष्ण प्रकृति के द्रव्यों का उपयोग किया जाता है जैसे हल्दी, लहसुन, सरसों, सेन्धा नमक, एरण्ड, आकड़ा, रास्ना, निर्गुण्डी, सफ़ेद पुनर्नवा, जौ, तिल, कुल्थी, उड़द, बैर, बालू रेती, पत्थर या लोहे का गोला, शंख, मिट्टी, गाय का गोबर आदि ।

स्वेदन कर्म के प्रकार :

ये प्रकार भेद विभिन्न कारणों से किये गये हैं जिनमें से एक भेद है एकांग भेद और सर्वांग भेद ।

एकांग भेद –
शरीर के किसी एक ही अंग से पसीना निकालने को एकांग भेद कहते हैं।

सर्वांग भेद –
उष्ण द्रव्यों का प्रयोग कर पूरे शरीर से पसीना निकालना सर्वांग भेद है।

औषधि के गुणों के आधार पर दो भेद हैं- स्निग्ध भेद और रूक्ष भेद।

स्निग्ध भेद –
वात दोष का शमन करने के लिए तैल, तिल, सरसों, चावल, दूध आदि स्निग्ध गण वाले पदार्थों का प्रयोग कर लेपया धारा आदि विधि सेस्वेदन करना स्निग्ध भेद है।

रूक्ष स्वेदन –
कफ के शमन के लिए बालू रेत, ईंट, लोहा, जौ, रास्ना आदि रूखे गुण वाले पदार्थों को आग पर तपा कर कपड़े में लपेट कर शरीर को सेकना या बिजली के उपकरण से सेकना और पसीना निकालना रूक्ष स्वेदन करना होता है।

अग्नि संस्कार द्वारा स्वेदन करने के भी दो भेद हैं- अग्नि सहित और अग्नि रहित जिन्हें साग्नि और अनाग्नि कहते हैं।

साग्नि स्वेदन –
अग्नि का प्रयोग करके गर्म मकान, कमरा या केबिन में बैठा कर पसीना निकालना साग्नि स्वेदन है ।

अनाग्निस्वेदन –
अग्नि के उपयोग के बिना व्यायाम द्वारा पसीना निकालना अनाग्निस्वेदन है।
गरम ऊनी वस्त्र या कम्बल ओढ़ कर या धूप में बैठ कर पसीना निकालना भी अनाग्नि स्वेदन कर्म कराना है।

साग्नि स्वेदन में तापस्वेद, उपनाह स्वेद, द्रव स्वेद और उष्णस्वेद-ये चार भेद हैं। इनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है –

ताप स्वेद –
किसी भी साधन से शरीर को ताप पहुंचा कर पसीना निकालना ताप स्वेद है।

उपनाह स्वेद –
किसी अन्न को उचित औषधियों के साथ उबाल कर काढ़ा बना कर अंग विशेष या परे शरीर पर लेप करके पसीना निकालना उपनाह स्वेद है।

द्रव स्वेद –
किसी तरल पदार्थ को गरम करके उसमें रोगी को बैठाना या धार डाल कर पसीना निकालना द्रव स्वेद है।

उष्ण स्वेद –
किसी वनस्पति या औषधि का काढ़ा बना कर इसकी भाप से पसीना निकालना उष्ण स्वेद है।

रोग और रोगी की अवस्था का अध्ययन करके जो स्वेद विधि उपयुक्त होती है उसका प्रयोग कर स्वेदन कर्म करने का निश्चय, पंचकर्म चिकित्सा के विशेषज्ञ चिकित्सक द्वारा किया जाता है।

वाष्पस्नान (स्टीम बाथ) की विधि :

विशेष स्वेदन कर्म विधि का उपयोग करने के बाद वाष्पस्नान (स्टीम बाथ) द्वारा रोगीको सर्वांगस्नान कराया जाता है। शरीर पर तैल की मालिश करके वाष्प स्नान द्वारा पसीना निकाला जाता है। इसके लिए एक केबिन या चेम्बर होता है जिसमें रोगी को बैठा कर वाष्प स्नान कराया जाता है। रोगी की गर्दन का ऊपरी हिस्सा चेम्बर या केबिन से बाहर होता है और शेष शरीर केबिन के अन्दर होता है। अन्दर एक कुर्सी पर रोगी को बैठा देते हैं और चेम्बर या केबिन में औषधि डाल कर उबाले हुए पानी की भाप छोड़ी जाती है।

रोगी का चेहरा केबिन या चेम्बर से बाहर रहता है और आंखों पर ठण्डी पट्टी बांध दी जाती है। चेम्बर या केबिन की व्यवस्था न हो तो गर्म पानी में तौलिया डुबा कर या भाप से तौलिया गर्म करके शरीर पर लपेटा जाता है। जालीदार कुर्सी के नीचे औषधि युक्त पानी को जलती अंगीठी पर रख कर रोगी को कुर्सी पर बैठा कर कम्बल लपेट देते हैं। भाप उठ कर रोगी के शरीर को वाष्प स्नान करा कर पसीना निकालती है। जब रोगी के ललाट पर पसीने की बूंदें दिखाई देने लगें तब उचित स्वेदन क्रिया सम्पन्न समझ कर वाष्प स्नान रोक देना चाहिए। इसकी सामान्य समय अवधि 15 से 25 मिनिट की होती है।

स्वेदन कर्म में सावधानियाँ :

☛ स्वेदन कर्म इस विषय के विशेषज्ञ चिकित्सक और परिचारक की देख रेख में ही किया जाना चाहिए। जरा सी भूल या लापरवाही से रोगी को लाभ की जगह हानि हो सकती है।
☛ नेत्रों पर बिल्कुल आंच नहीं आनी चाहिए।
☛ हृदय और अण्डकोशों पर हलका स्वेदन होना चाहिए।
☛ सभी प्रकार के स्वेदन कर्म बन्द कमरे में करने चाहिए जहां खुली और ठण्डी हवा न आती हो ।
☛ स्वेदन खाली पेट, तैल मालिश करने के बाद ही करना चाहिए।
☛ स्वेदन कर्म की अवधि और दिनों के बारे में रोग और रोगी की स्थिति समझ कर चिकित्सक ही निर्णय लेता है।
☛ लगातार अधिक दिनों तक सर्वांग स्वेदन कर्म नहीं करना चाहिए।

उचित लक्षण :

✦ सर्वांग स्वेदन में ललाट पर पसीने की बूंदें झलकना,
✦ ठण्डापन, दर्द या जकड़न दूर होना, हलकापन का अनुभव होना,
✦ व्याधि के लक्षण कम होना,
✦ आराम मालूम देना,
✦ भूख प्यास लगना,
✦ मल-मूत्र की प्रवृत्ति समय पर होना
✦ एकांग स्वेदन में उस अंग की पीड़ा समाप्त होना ही लक्षण है।
आदि लक्षण प्रकट होते हैं।

उचित योग :

✦ स्वेदन कर्म में हीन योग या अति योग नहीं होना चाहिए बल्कि सम्यक (सात्म्य) योग होना चाहिए। हीनयानी आवश्यक मात्रा से कम योग होगा तो पर्याप्त प्रभाव और लाभ न होगा और अति योग होगा तो शरीर एवं त्वचा को हानि होगी, कष्ट बढ़ जाएगा और रोगी को लाभ तथा चैन मिलने की अपेक्षा हानि होगी तथा बेचैनी होगी। पित्त और गर्मी बढ़ जाने से रोगी बेहोश हो सकता है या शरीर में अवसाद, कमज़ोरी, घबराहट और चक्कर आना आदि शिकायतें पैदा हो सकती हैं।
✦ स्वेदन कर्म कराने के बाद रोगी को पूर्ण विश्राम कराना चाहिए।
✦ वाष्प स्नान द्वारा सर्वांग स्वेदन करने के बाद, अच्छे साफ़ और गरम पानी से स्नान करा कर हलका आहार खिला कर रोगी को पूर्ण विश्राम कराना चाहिए।

स्वेदन कर्म किन्हें करना चाहिये ? :

स्वेदन योग्य – जिस रोगी पर स्वेदन कर्म करना हो उसके रोग और स्वास्थ्य की स्थिति पर विचार कर लेना चाहिए ।
✦ सर्दी, खांसी, दमा, हिचकी, शरीर में भारीपन, मोटापा, वातजन्य रोग और दर्द होना।
✦ आम दोष, जकड़न, जोड़ों का दर्द, कमर और पीठ में दर्द होना ।
✦ सायटिका, किसी भी अंग में दर्द होना ।
✦ प्रसव के बाद प्रसूता के लिए ।
✦ एकांगवात, गुल्म, कर्णशूल, कम्पवात,अंगमर्द, अंग स्तब्ध होना।
✦ अंगों का संकुचित होना ।
आदि व्याधियों के रोगी स्वेदन कर्म कराने के योग्य होते हैं।

स्वेदन कर्म किन्हें नही करना चाहिये ? :

स्वेदन के अयोग्य – ऐसे व्यक्तियों को स्वेदन कर्म नहीं कराना चाहिए –
✦ नित्य शराब पीने वाला,
✦ अत्यधिक शारीरिक श्रम करने वाला,
✦ गर्भवती, रक्तपित्त अतिसार, कमज़ोर प्रवाहिका, रूखे शरीर वाला,
✦ मधुमेह से पीड़ित,
✦ गुदभ्रंश, तेज़ बुखार से पीड़ित,
✦ अत्यधिक थका हुआ,
✦ पित्त जन्य रोग से ग्रस्त,
✦ जलन, बेहोशी, भ्रमावस्था, चक्कर आना,
✦ मासिक ऋतु स्राव वाली रजस्वला स्त्री,
✦ कुष्ठरोगी, चिन्ता व तनाव से पीड़ित, शोकातुर,
✦ भयभीत, दग्ध (जला हुआ)
✦ कामला का रोगी
आदि स्वेदन कर्म करने के योग्य नहीं होते। इन्हें स्वेदन कर्म नहीं कराना चाहिए।