अगर गर्भावस्था के दौरान मां सकारात्मक रहेगी, तो बच्चे की सोच व व्यवहार पर उसका असर पड़ेगा। हालांकि, अब यह संस्कार इतना प्रचलन में नहीं है, लेकिन वैदिक काल में इसका अत्यंत महत्व था। यजुर्वेद में गर्भवती महिलाओं के लिए गर्भ संस्कार का महत्व का वर्णन किया गया है। धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक दृष्टि से भी इसका महत्व है। इस बात से हर कोई सहमत होगा कि गर्भावस्था के दौरान महिला जो खाती है, उसका असर शिशु पर जरूर होता है। उसी प्रकार महिला क्या सोचती है, क्या बोलती है व क्या पढ़ती है, उसका असर भी गर्भ में पल रहे शिशु पर पड़ता है। इसलिए, गर्भवती महिला को उत्तम भोजन करना चाहिए और हमेशा प्रसन्न रहना चाहिए।
गर्भवती होने पर गर्भ संस्कार कब शुरू करें ?
गर्भावस्था के दौरान सिर्फ अपना और शिशु का ध्यान रखना ही काफी नहीं है, बल्कि शिशु के साथ आत्मीय संबंध बनाना भी जरूरी है। आप जैसे ही गर्भ धारण करती हैं, गर्भाधान संस्कार शुरू हो जाता है। इस दौरान आप बच्चे से बात करें और उसे अच्छी-अच्छी कहानियां सुनाएं। विज्ञान भी कहता है कि गर्भ में पल रहा भ्रूण हर आवाज पर अपनी प्रतिक्रिया देता है। मां के शरीर से कुछ हार्मोंस निकलते हैं, जो शिशु को एक्टिव करते हैं। इसलिए, आप पूरे गर्भावस्था के दौरान सकारात्मक सोच बनाए रखें। ऐसा माना जाता है कि गर्भाधान संस्कार पूरी गर्भावस्था के साथ-साथ शिशु के 2 वर्ष का पूरा होने तक चलता है।
गर्भवती महिलाओं के लिए गर्भ संस्कार गतिविधियों की सूची
गर्भ संस्कार स्वस्थ बच्चे को जन्म देने के सर्वोत्तम तरीकों में से एक है। यह न केवल मानसिक रूप से, बल्कि शारीरिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से भी मां और बच्चे दोनों के लिए फायदेमंद है। यहां हम कुछ गतिविधियां बता रहे हैं, जिनका पालन गर्भाधान संस्कार के दौरान करना चाहिए :
- अच्छा आहार : गर्भावस्था में पौष्टिक आहार बेहद जरूरी है, क्योंकि भ्रूण का विकास मां के स्वास्थ्य और पोषण पर निर्भर करता है। इसलिए, मां को विटामिन और खनिजों से भरपूर आहार लेने की सलाह दी जाती है। गर्भ संस्कार के तहत सात्विक भोजन करना चाहिए। इस दौरान मां को नशीले पदार्थों से परहेज करना चाहिए।
- सकारात्मक सोच : गर्भावस्था में महिला को मूड स्विंग जैसी स्थिति का सामना करना पड़ता है, लेकिन गर्भ संस्कार आपको अपनी भावनाओं को नियंत्रण करने में मदद करता है। यह मां और बच्चे दोनों के लिए अच्छा है।
- व्यायाम : डॉक्टर के निर्देश व सलाह पर आप हल्के-फुल्के व्यायाम व योग कर सकते हैं। खासतौर पर प्राणायाम एवं मेडिटेशन करने से आपको अधिक फायदा होगा। इससे शिशु का शारीरिक और मानसिक विकास बहुत अच्छा होता है। साथ ही आपका तनाव कम होगा और आप हमेशा प्रसन्न रहेंगी। इतना ही नहीं डिलीवरी के समय भी आपको परेशानी नहीं होगी।
- संगीत : संगीत सभी को अच्छा लगता है। संगीत से सभी को शांति प्राप्त होती है। संगीत तनाव को दूर करने में काफी मददगार हो सकता है। अगर मां अच्छा संगीत सुनती है, तो बच्चे भी उसका प्रभाव पड़ता हैं और वह खुश रहता है। कुछ चुनिंदा राग जैसे – राग यमन, बागेश्वर, शांत, कोमल असावरी निर्धारित प्रहर मे सुनने से माँ और शिशु को अनेक लाभ मिल सकते है।
- बच्चे से बात करें (गर्भ संवाद) : बच्चे से बात करने से अकेलापन दूर होता है और खुशी का अहसास होता है। साथ ही जब आप बात करते हैं, तो कई बार शिशु प्रतिक्रिया भी देता है। धार्मिक एवं मौलिक विषयों की कहानियाँ शिशु को सुनाना चाहिए।
क्या मेरी भावनाएं और विचार, मेरे अजन्मे बच्चे को प्रभावित कर सकती हैं?
जब बच्चा मां के पेट में होता है, तब वह बाहर के प्रभावों जैसे ध्वनि, प्रकाश और गति को समझने में सक्षम होता है। उदाहरण के लिए, जब आप गर्भावस्था के दौरान कोई मजेदार फिल्म देखती हैं, तो आप खुश होती है। ऐसा माना जाता है कि आपके बच्चे में भी उस समय कुछ सकारात्मक भावनाओं का संचार होता है। वहीं, अगर मां नकारात्मक सोचती है और दुखी रहती है, तो बच्चे पर भी इसका प्रभाव पड़ सकता है।
गर्भ संस्कार का महत्व/लाभ
ऐसा माना जाता है कि इस संस्कार को करने से गर्भ में पल रहे शिशु में सद्गुणों का विकास हो सकता है और शिशु स्वस्थ भी हो सकता है।
- बच्चे के विकास में मदद करता है : गर्भ में एक अजन्मा बच्चा बाहर के प्रभावों को समझ सकता है, जैसे कि उसे प्रकाश, संगीत और दूसरी चीजों के बारे में पता चल जाता है और वह उन्हें महसूस करने के साथ-साथ सुन भी सकता है। इससे गर्भ में बच्चे का शारीरिक व मानसिक विकास अच्छी तरह होता है।
- अच्छे गुण आना : गर्भाधान संस्कार के कारण शिशु का स्वभाव शांत हो सकता है और वह हमेशा प्रसन्न रह सकता है। साथ ही वह तेजस्वी, स्वस्थ, सुन्दर, बुद्धिमान, निर्भीक और संस्कारवान भी हो सकता है।
- आसान गर्भावस्था : ऐसा माना जाता है कि गर्भ संस्कार के कारण गर्भावस्था आराम से गुजर सकती है। उच्च रक्तचाप, मधुमेह, समयपुर्व प्रसव, शिशु के विकास में कमी मे राहत मिल सकती है।
गर्भ संस्कार की विधि
- अच्छी व संस्कारवान संतान की प्राप्ति के लिए गर्भधान संस्कार की शुरुआत यानी पति-पत्नी का मिलन शुभ मुहूर्त में होना चाहिए। गर्भ संस्कार को कभी भी अशुभ मुहूर्त और क्रूर ग्रहों के नक्षत्र के समय नहीं करना चाहिए। श्राद्धपद, ग्रहणकाल, पूर्णिमा या फिर अमावस्या को नहीं करना चाहिए।
- इससे पहले दंपति को अपनी कुंडली के अनुसार ग्रहों की शांति करवानी चाहिए और फिर गर्भधान संस्कार को संपन्न करना चाहिए।
- शास्त्रों के अनुसार रजोदर्शन (मासिक धर्म की शुरुआत) की पहली 4 रातों, 11 वीं और 12 वीं रातों को गर्भ संस्कार नहीं करना चाहिए।
- गर्भ संस्कार को हमेशा सूर्यास्त के पहले ही करना चाहिए और दक्षिण दिशा की ओर मुख करके भी नहीं करना चाहिए।
नोट : अलग-अलग धर्मों के अनुसार गर्भ संस्कार की विधि और उसके नियम अलग-अलग हो सकते हैं।
गर्भाधान सिर्फ एक संस्कार भर नहीं है, बल्कि शिशु को जन्म से पहले ही अच्छी शिक्षा और उसके जीवन को सही दिशा देने का मार्ग है। साथ ही मां और शिशु के बीच के रिश्ते को मजबूत करता है। अगर आप गर्भवती होने के बारे में सोच रही हैं या गर्भवती हैं, तो गर्भाधान संस्कार के तहत अभी से अपने शिशु को अच्छे संस्कार देने शुरू करें। इससे वह भविष्य में न सिर्फ आपका, बल्कि राष्ट्र का नाम भी रोशन करेगा। ऐसे ही अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़े रहिए धन्वंतरी आयुर्वेदिक से।